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ग्लूकोमा के कारण, लक्षण और इलाज

ग्लूकोमा के कारण, लक्षण और इलाज

इस ब्लॉग में हम जानेंगे “ग्लूकोमा के कारण, लक्षण और इलाज के बारे में

हमारे शरीर की पांच ज्ञानेंद्रियां (sense organs) है आंख, नाक, कान, जीभ व त्वचा। आंखों को हमारी ज्ञानेंद्रियों और शरीर के सबसे कोमल अंगों में गिना जाता है इसलिए हमें इनका ख्याल रखना चाहिए। 

आँखों से संबंधित अगर कोई छोटी सी भी समस्या हुई है तो हमारे लिए ये एक बड़ी समस्या बन सकती है। इन्हीं छोटी-छोटी बातों का ख्याल न रख पाने के कारण लोग 40 वर्ष की उम्र में आते-आते ही आँखों की अनेक समस्याओं का शिकार हो जाते हैं जिस के कारण आंखों में कई बीमारियां उत्पन्न हो सकती हैं। ऐसी बीमारियों में ग्लूकोमा को भी गिना जाता है

ग्लूकोमा क्या है / Glaucoma kya hai

ग्लूकोमा जिसे हिंदी में काला मोतिया के नाम से जाना जाता है इससे अंधापन होने का खतरा होता है। यह एक बेहद आम बीमारी है। आजकल की भागदौड़ वाली जिंदगी में हम आंखों का ख्याल रखना भूल जाते हैं।

बढ़ता हुआ प्रदूषण और अनुचित खानपान हमारी आंखों को काफी नुकसान पहुंचाता है। यही वजह है कि 35 से 40 उम्र तक आते-आते लोग अपनी आंखों की गंभीर बीमारियों का शिकार हो जाते हैं । काला मोतिया अर्थात ग्लूकोमा भी उन्हीं में से एक है।

यह हमारी ऑप्टिक नर्व (आँखों की तंत्र कोशिकाओं) को नुकसान पहुंचाता है जो आंखों से मस्तिष्क तक जानकारी पहुंचाने का काम करती हैं। 

कुछ मामलों में ऐसा होता है कि आंख के अंदर की तंत्र कोशिकाओं पर उच्च दबाव पड़ता है। काला मोतिया उसी से जुड़ा होता है। यह समस्या जन्मजात, वंशानुगत दोष (hereditary defect) या गर्भावस्था में किसी असामान्य कारण से विकसित हो सकती है। 

इसमें एक तरल पदार्थ निकलता है जो नलियों को ब्लॉक होने या चिकित्सीय समस्या के कारण उन पर दबाव बढ़ने से हो सकता है।

एक अनुमान के अनुसार भारत में लगभग 40 वर्ष से अधिक आयु के लोग जिनकी संख्या एक करोड़ से भी ज्यादा है, काला मोतिया से पीड़ित हैं। 

यदि उचित समय पर उनको उपचार ना मिले तो उनकी आंखों की रोशनी भी जा सकती है। इससे बचने के लिए जरूरी यह है कि आप सबसे पहले डॉक्टर की सलाह लें व सही उपचार करवाएं। 

डॉक्टर के परामर्श के बिना किसी दवा का इस्तेमाल ना करें। पोषक तत्वों से भरपूर भोजन करें। अपनी जीवन शैली में बदलाव लाएँ। अपने तौर-तरीकों को बदलें। आंखों को स्वच्छ रखें। इन्हीं सब से काला मोतिया अर्थात ग्लूकोमा से बचा जा सकता है जो हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक है।

जिस प्रकार हमारे शरीर का हर भाग हमारे लिए बहुत ज़रूरी है उसी प्रकार नेत्र भी अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण हैं। 

काला मोतिया में अधिकतर कोई लक्षण दिखाई नहीं देते और ना ही दर्द होता है। यह दृष्टहीनता का एक प्रमुख कारण माना जाता है। पूरे विश्व में काला मोतिया दृष्टहीनता का दूसरा सबसे प्रमुख कारण है।

काला मोतिया के कारण जब एक बार इंसान की आंखों की रोशनी चली जाती है तो उसे दोबारा पाया नहीं जा सकता। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि आंखों का नियमित अंतराल में जांच करवाते रहें ताकि आंखों पर पड़ने वाले दबाव का कारण तथा उसका पता लगा कर तुरंत उसका उचित उपचार कराया जा सके। 

अगर काला मोतिया की पहचान उसकी शुरुआती चरण में हो जाए तो दृष्टि को कमजोर पड़ने से रोका जा सकता है और सही इलाज से काला मोतिया को भी रोका जा सकता है। काला मोतिया एक ऐसी बीमारी है जो किसी भी उम्र में हो सकती है लेकिन उम्र के बढ़ते ढलान के साथ यह बीमारी अधिकतर लोगों में पाई जाती है। इसका एक मुख्य कारण लैपटॉप या मोबाइल का अधिक प्रयोग करना भी है।

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ग्लूकोमा के प्रकार / Glaucoma ke Prakaar

ग्लूकोमा पांच प्रकार का होता है-

1. प्राथमिक या ओपन एंगल ग्लूकोमा

शुरुआत में इसका कोई लक्षण नहीं दिखाई देता लेकिन इसके ज्यादा बढ़ने पर आंखों के किनारे या बीच में धब्बा दिखाई देता है। यह सामान्य प्रकार का होता है। इसमें आंखों के अंदर तरल पदार्थ को बाहर निकलने वाली नलियां ब्लॉक हो जाती हैं। इसके कारण आंखों में जो तरल पदार्थ होता है वह उचित मात्रा में बाहर नहीं निकल पाता। इससे आंखों में प्रेशर बढ़ने लगता है। इसी को प्राथमिक या ओपन एंगल ग्लूकोमा कहते हैं

2. एंगल क्लोजर ग्लूकोमा

इसको नैरो एंगल ग्लूकोमा भी कहते हैं। इसमें आंखों से तरल पदार्थ निकलने वाली जो नलियाँ होती हैं वे पूरी तरह से बंद हो जाती हैं जिसके कारण से हमारी आंखों में दबाव तेजी से बढ़ता है।

जब इस तरल का बहना बंद हो जाता है तो यह अधिक मात्रा में एक जगह इकट्ठा हो जाता है। जिसके कारण से इसका दबाव अत्यधिक मात्रा में बढ़ जाता है और तेज दर्द भी होता है।

3. लो टेंशन या नॉरमल टेंशन ग्लूकोमा

इसको तनाव ग्लूकोमा भी कहा जाता है। यह ग्लूकोमा हमारे ऑप्टिक नर्व पर बिना दबाव बढ़ाए नुकसान पहुंचाता है।

ऐसा माना जाता है कि इसमें आप्टिक नर्व संवेदनशील हो जाती हैं जिसके कारण रक्त की आपूर्ति कम मात्रा में होती है।

4. कॉन्जेनिटल ग्लूकोमा

इसे काला मोतिया या जन्मजात मोतिया कहा जाता है। यह समस्या बच्चों में जन्मजात दोष वंशानुगत दोष या गर्भावस्था में किसी असामान्य घटना के कारण विकसित हो सकती है।

5. सेकेंडरी ग्लूकोमा

यह ग्लूकोमा किसी आकस्मिक चिकित्सीय कमी या स्थिति के कारण होता है जिससे हमारी आंखों पर निरंतर दबाव बढ़ता रहता है। इसके कारण ऑप्टिक नर्व को नुकसान पहुंचता है जो काला मोतिया का कारण बन जाता है 

ग्लूकोमा के लक्षण / Glaucoma ke lakshan

काला मोतिया के शुरुआती दौर में इसमें कोई लक्षण दिखाई नहीं देते लेकिन जब समस्या गंभीर हो जाती है तो आंखों में ब्लडिंग स्पाट पड़ने लगते हैं। इससे हमारे ऑप्टिक नर्व को नुकसान पहुंचता है। इसके परिणाम स्वरूप हमें ग्लूकोमा के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। ये लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि यह काला मोतिया किस प्रकार का है और किस चरण का है। सामान्य काला मोतिया के कुछ लक्षण यहाँ दिए गए हैं जो निम्नलिखित हैं-

बच्चों और युवाओं में बढ़ता ग्लूकोमा

ग्लूकोमा आजकल युवाओं के साथ-साथ बच्चों में भी दिखाई देने लगा है। यह चिंताजनक हैं। यह अब बच्चों में जन्मजात रूप से देखा जा सकता है। गर्भावस्था में बच्चे इसकी या अन्य बीमारी के शिकार हो जाते हैं। इन सब के बचाव के लिए बेहद जरूरी है उनकी देखरेख। ऐसे में माताओं को बिना डॉक्टरी सलाह से दवाओं का सेवन करने से परहेज करना चाहिए।

अपनी और अपने बच्चों की नियमित जांच करवानी चाहिए। अगर मां थायराइड, डायबिटीज इत्यादि जैसी किसी भी बीमारी से पीड़ित है तो उसे इसका इलाज करवाना चाहिए। गर्भधारण के  समय जो भी सावधानियां होती हैं उन्हें अवश्य लेना चाहिए क्योंकि मां में होने वाली बीमारियां बच्चों में किसी भी तरह के विकार उत्पन्न कर सकती हैं। 

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ग्लूकोमा के उपचार / Glaucoma ke upchaar

अगर ग्लूकोमा का इलाज समय पर ना हो तो यह अंधेपन में बदल सकता है। काला मोतिया आंखों को जो नुकसान पहुंचा चुका है उसे तो सही नहीं किया जा सकता लेकिन डॉक्टर के परामर्श व उसके उपचार के द्वारा इसके लक्षणों को गंभीर होने से रोका जा सकता है और आंखें बचाई जा सकती हैं।

इसका उपचार सर्जिकल यह नॉन सर्जिकल दोनों तरह से किया जा सकता है। विभिन्न दवाइयों के द्वारा भी इसका उपचार किया जा सकता है लेकिन किसी भी दवाई लेने से पहले आप डॉक्टर का परामर्श लें क्योंकि इन सभी स्थितियों में डॉक्टर का परामर्श बहुत जरूरी होता है। 

आई-ड्रॉप्स या खाने वाली दवाइयों के रूप में विभिन्न प्रकार की दवाइयां दी जाती हैं। इससे काले मोतिया के सबसे शुरुआती दौर को आसानी से कम किया जा सकता है। 

ग्लूकोमा के इलाज के दौरान हमें निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-

कोई ऐसा काम ना करें जिससे आंखों पर दबाव पड़े।

निष्कर्ष / Conclusion

हमारी आंखें अनमोल है। आंखों की किसी भी समस्या को अनदेखा ना करें। आंखों से संबंधित किसी भी समस्या के लक्षण दिखाई दें तो डॉक्टर को समय पर दिखाएं और उसकी जांच पड़ताल करें।

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  • Deepak is an engineering graduate with a passion for health and wellness. Leveraging his technical expertise, he write about topics like healthy living, nutritious food, self-care, mental well-being etc. With a focus on evidence-based practices, Deepak aims to inspire others to lead balanced and healthier lives through their writing.

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