इस ब्लॉग में हम जानेंगे “क्रॉनिक डिप्रेशन ‘डिस्थीमिया’ क्या है? जाने इसके लक्षण, कारण और बचाव के बारे में“
डिस्थीमिया क्या है? | Dysthymia meaning in hindi
डिस्थीमिया (Dysthymia) इसको हम आम और सरल भाषा में मूड ऑफ रहना भी कह सकते हैं। व्यक्ति का किसी चीज में दिल ना लगना, उसकी रुचि कम हो जाना, इच्छाएं खत्म हो जाना, किसी चीज पर नियंत्रण ना रख पाना, यह सारी चीजें ‘डिस्थीमियां’ के अंतर्गत आती हैं जो एक क्रॉनिक डिप्रेशन है यानी अवसाद। क्रॉनिक डिप्रेशन ‘डिस्थीमिया’ पुरुषों के मुकाबले स्त्रियों को ज्यादा प्रभावित करता है।
डिस्थीमिया के मामले में लगभग 105 लोगों में 1.8 प्रतिशत औरतें हैं वहीं आदमियों की संख्या 1.3 प्रतिशत है।
दूसरे देशों में इसकी बहुत ज्यादा संख्याएं मिलती हैं। हमारे भारत में भी यह बीमारी दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। हर छह व्यक्तियों में आपको तीन व्यक्ति क्रॉनिक डिप्रेशन ‘डिस्थीमिया’ से प्रभावित मिलेगें। इस बीमारी के ज्यादातर लक्षण बचपन या किशोरावस्था के दौरान आने लगते हैं। इसके कारण बच्चों और युवाओं में चिड़चिड़ापन, गुस्सा, अवसाद, तनाव, चिंता आदि रहना शुरू हो जाती हैं।
डब्ल्यूएचओ (World Health Organisation) के शोध के अनुसार लगभग 264 मिलियन लोग डिप्रेशन के शिकार हैं। यह एक तरह की मानसिक बीमारी है जो ध्यान ना देने पर खतरनाक हो सकती है। तनाव और चिंता आदि जैसी चीजें सामान्य विकार है परंतु जब यह सामान्य से बढ़ जाएं तो यह परेशानी ‘डिस्थीमिया’ का रूप ले सकती है।
डिस्थीमिया का पूरा नाम परसिस्टेंट डिप्रेसिव डिसऑर्डर होता है। डिस्थीमियां एक डिप्रेशन है जो लंबी अवधि तक व्यक्तियों में देखा जा सकता है। एक शोध के अनुसार यह पाया गया है कि क्रॉनिक डिप्रेशन ‘डिस्थीमिया’ से पीड़ित लोगों में इसके लक्षण 2 साल या उससे अधिक वक्त तक भी देखे जा सकते हैं।
डिस्थीमिया के लक्षणों के बारे में कुछ जानकारी | Dysthymia symptoms in hindi
‘डिस्थीमिया’ के बारे में एन सी बी आई के अनुसार कुछ लक्षण बताए गए हैं जिनके द्वारा हम ‘डिस्थीमियां’ यानी क्रॉनिक डिप्रेशन का पता लगा सकते हैं। तो आइए जानते हैं ‘डिस्थीमिया’ के लक्षण के बारे में –
- व्यक्ति का बहुत ज्यादा दुखी या उदास रहना
- हर चीज के प्रति निराशा रहना
- बहुत ज्यादा कमजोरी महसूस होना
- खुद को थका हुआ पाना
- सही तरीके से भूख ना लगना
- ध्यान को केंद्रित करने में परेशानी होना
- रोजमर्रा के कामों में रुचि ना लेना
- अपनी जीवनशैली को सही से व्यतीत ना कर पाना
- खुद को दूसरों के मुकाबले में कम मानना
- नकारात्मक विचारधाराएं रखना
- खुद को नकारात्मक व्यक्ति बना लेना
- सही तरीके से नींद ना आना, या नींद न ले पाना
- सामाजिक ना हो पाना
- लोगों से बात करने में दिक्कत आना
- अकेले रहना पसंद करना
- आत्मविश्वास की कमी होना
- हमेशा चिचड़ापन रहना
- बात-बात पर गुस्सा हो जाना
- खुद को सक्षम महसूस ना करना
- बेसुकून रहना
यहॉं बताए गए लक्षण अगर किसी भी व्यक्ति में पाए जाते हैं तो उसे चाहिए कि वह जल्द से जल्द चिकित्सक से संपर्क करें और उसकी बताई हुई बातों को अपनाएं। ऐसा करने से व्यक्ति खुद को ‘डिस्थीमिया’ जैसी मानसिक बीमारी से बचा सकता है।
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डिस्थीमियां यानी क्रॉनिक डिप्रेशन के कारण | Causes of Dysthymia in hindi
‘डिस्थीमिया’ के कारणों के बारे में अभी तक शोध जारी है। कई सारे शोध से पता चला है कि यह एक तरीके का अवसाद है और जो चीजें अवसाद के कारण होती हैं वही चीजें ‘डिस्थीमियां’ के भी कारण होती हैं। तो आइए जानते हैं कि ‘डिस्थीमिया’ के होने के कारण क्या हैं?
विभिन्न हार्मोन्स के द्वारा
हार्मोनल डिसबैलेंस के कारण भी ‘डिस्थीमिया’ की बीमारी हो सकती है। जब व्यक्ति के मस्तिष्क की कार्यक्षमता किसी भी कारणवश प्रभावित होती है तो ऐसे ही मस्तिष्क हारमोन ग्रंथियों (hormone glands) को नियंत्रित करने में असक्षम होने लगता है। इससे व्यक्ति के दिमाग के रसायन विचलित हो जाते हैं तो व्यक्ति को अवसाद या ‘डिस्थीमिया’ जैसी समस्या आने लगती है।
वंशानुगत (Hereditary) कारण
‘डिस्थीमिया’ का एक कारण वंशानुगत कारण भी हो सकता है। यदि परिवार की हिस्ट्री या इतिहास में कभी किसी भी व्यक्ति को कोई मानसिक बीमारी रही है तो ऐसे में आने वाले लोगों में मानसिक बीमारियों के होने की संभावनाएं बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए यदि परिवार के किसी सदस्य में पहले कभी OCD अर्थात ऑब्सेसिव कंपल्सरी डिसॉर्डर रहा है तो ऐसे में आने वाली पीढ़ी के किसी व्यक्ति में इस बीमारी की संभावना अन्य लोगों की अपेक्षा अधिक हो जाती है।
ठीक इसी तरह जो लोग ज़्यादा तनाव में रहते हैं उनके आने वाले बच्चों में भी तनाव होने की संभावना बढ़ जाती है।
मानसिक बीमारियां दरअसल स्थितियों तथा व्यक्ति के दिमाग़ या मस्तिष्क की कार्य क्षमता के आधार पर होती हैं। ये एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में भी आसानी से जा सकती है। कई बार ऐसा होता है कि हमारे वंश या खूनी रिश्ते में किसी को चिंता, तनाव या बाइपोलर डिसऑर्डर हो तो वह आने वाले व्यक्तियों को भी हो सकता है।
किसी दुर्घटना के कारण
स्थितियों का मानसिक संतुलन पर एक गहरा प्रभाव पड़ता है। हम किसी भी स्थिति में हैं उसका सीधा असर हमारी विचारधाराओं पर पड़ने लगता है।
उदाहरण के तौर पर यदि हम अच्छे और सकारात्मक लोगों के बीच रहते हैं तो ऐसे में सकारात्मकता हमारे व्यक्तित्व में भी दिखने लगती है। ठीक इसी तरह यदि हम उन लोगों के बीच रहते हैं जो नकारात्मक विचारधारा वाले या निराश रहने वाले होते हैं तो ऐसे में हम भी उनकी तरह सोचना शुरू कर देते हैं। ये चीज़ें सीधे तौर पर अवसाद या क्रॉनिक डिप्रेशन ‘डिस्थीमिया’ को जन्म दे सकती हैं। इसी के साथ आपको बताते चलें कि घटनाओं से ज़्यादा दुर्घटनाओं का प्रभाव हमारे मस्तिष्क पर पड़ता है। अगर हमारे अतीत में कोई अप्रिय दुर्घटना हुई है ऐसे में ये हमें अवसाद के अंधेरों में धकेल सकती है। किसी अप्रिय घटना के घटित होने के कारण भी यह बीमारी हो सकती है जैसे किसी व्यक्ति के प्रिय दोस्त या परिवार के किसी सदस्य की अचानक मौत हो जाए तो इसका असर उसके मस्तिष्क पर नकारात्मक पड़ने के कारण ‘डिस्थीमियां’ हो सकता है।
आर्थिक स्थिति
आज के दौर में हर व्यक्ति अधिक से अधिक पैसे कमाने की चाह में परेशान रहने लगा है। कुछ लोग अधिक पैसे कमाने के बाद भी संतुष्ट नहीं होते हैं और वे निराशा की ओर बढ़ने लगते हैं।
इसी के साथ ऐसे लोग जिनके घर में आर्थिक तंगी है और जो पर्याप्त धन नहीं कमा पा रहे हैं वे भी परेशान रहने लगते हैं।
जब लोग अपने परिवार की ज़रूरतों को पूरा नहीं कर पाते हैं तो ऐसे में वे अपराधबोध की भावना को लेकर जीने लगते हैं। वे इन सब का ज़िम्मेदार ख़ुद को मानते हैं और वे नकारात्मकता की ओर बढ़ने लगते हैं। इससे उन्हें अवसाद होना शुरू हो जाता है। इस प्रकार ‘डिस्थीमिया’ होने का एक सबसे बड़ा कारण आर्थिक तंगी भी है। यदि किसी व्यक्ति को आर्थिक तंगी है तो उसे यह बीमारी होने की ज्यादा की संभावना होती है।
शारीरिक बीमारियों के कारण
क्रॉनिक बीमारियों जैसे दिल की बीमारी, मधुमेह, थायराइड आदि के कारण भी के कारण ‘डिस्थीमिया’ हो सकता है।
दिमागी चोट के कारण
यदि किसी व्यक्ति को उसके अतीत में कभी दिमाग पर गहरी चोट लगी हो या कोई अंदरूनी चोट लगी हो तो उसे ‘डिस्थीमिया’ होने की संभावना अधिक होती है।
‘डिस्थीमिया’ पुरुषों के मुकाबले में स्त्रियों में होने की ज्यादा संभावना हो सकती है।
डिस्थीमिया होने के कारण क्या-क्या जोखिम होते हैं? | What are the risks of having Dysthymia?
- ‘डिस्थीमिया’ होने के कारण व्यक्ति अपना काम सही से नहीं कर पाता चाहे वह स्कूल का काम हो या उसकी रोजमर्रा की जिंदगी का। वह अपनी जीवनशैली से बहुत परेशान रहता है और काम को सही से नहीं कर पाता।
- ऐसे व्यक्ति को परिवारिक तालमेल बनाना भी नहीं आता। वह इस मामले में असक्षम रहता है।
- ऐसे व्यक्तियों को सामाजिक होने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। वे आसानी से लोगों से बातचीत नहीं कर पाते। उनके अंदर आत्मविश्वास की कमी रहती है। वह दूसरों के मुकाबले खुद को कम मानते हैं।
- ‘डिस्थीमिया’ होने का एक जोखिम यह है कि इस बीमारी से पीड़ित लोग खुदकुशी करना चाहते हैं और वे आत्महत्या करने की कोशिश करते हैं।
- इस बीमारी के कारण कई मानसिक और शारीरिक बीमारियां भी हो सकती हैं।
- ऐसे लोग बहुत जल्दी मादक द्रव्यों का सेवन करने लगते हैं।
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डिस्थीमिया जैसी बीमारी से कैसे बचाव करें? | How to treat disease like Dysthymia?
- ‘डिस्थीमिया’ जैसी बीमारी से बचने के लिए सबसे पहले जरूरी है कि डॉक्टर से संपर्क करें और चिकित्सक द्वारा बताए गई बातों को अपनाएं। कोई भी ऐसा काम ना करें जो ‘डिस्थीमिया’ के इलाज में रुकावट का कारण बने।
- इस बीमारी से बचने के लिए भरपूर नींद लें। हर व्यक्ति को चाहिए कि वह सात से आठ घंटे जरूर सोएँ।
- अपने आहार में पोषण से भरपूर चीजें लें ताकि उसके जरिए से आपके मस्तिष्क और शरीर में जो भी कमियां हैं वह दूर हो जाएं।
- कोई भी ऐसा काम ना करें जो कानून के खिलाफ हो।
- खुद को हमेशा व्यस्त रखें।
- ऐसा काम करें जो खुद को पसंद हो।
- सकारात्मक विचार रखें।
- अपने आस पास का माहौल खुशगवार रखें। ऐसे लोगों के पास उठें बैठें जो आप पर अच्छा प्रभाव डालते हो। बुरे प्रभाव डालने वाले व्यक्तियों से दूर रहें।
- बहुत सी एंटी डिप्रेशन दवाएँ भी चिकित्सक के द्वारा बताई जाती हैं जिनको लेकर इस बीमारी से बचा जा सकता है। इस बात का ख्याल रखें कि इन दवाओं का सेवन करने के बाद बीमारी से ठीक होने में हफ्ता और महीना भी लग सकता है। देर होने पर घबराएं नहीं क्योंकि दवाओं का असर धीरे-धीरे हो सकता है।
- क्रॉनिक डिप्रेशन ‘डिस्थीमिया’ से बचने के लिए अपनी पसंद की फिल्में भी देख सकते हैं। ऐसी फिल्में जिससे आपके मस्तिष्क पर अच्छा प्रभाव पड़े और ये आपके अंदर से अवसाद को ख़त्म करें ताकि आपके अंदर सकारात्मक उर्जा उत्पन्न हो।
- यात्रा करें।
- अपनी पसंद का कोई भी खेल खेलें।
- बागबानी करें।
- प्रोटीन का सेवन करें क्योंकि यह डिप्रेशन को दूर करता है। हमारे शरीर के निर्माण में प्रोटीन अहम भूमिका भी निभाता है। अपने आहार में चना, दाल इत्यादि को जरूर शामिल करें।
- ओमेगा 3 फैटी एसिड को अपने आहार में शामिल करें। ऐसी चीजों को अपने आहार में शामिल करें जिसमें ओमेगा 3 फैटी एसिड पाया जाता है जैसे मछली, अखरोट, अलसी आदि।
- विटामिन डी का खासतौर से ख्याल रखें। हर रोज सुबह उठकर सूरज की रोशनी लें। इसके साथ-साथ उन चीजों को अपने आहार में शामिल करें जिनमें विटामिन डी पाया जाता है जैसे दूध, दही, अंडा, दलिया, मशरूम आदि।
- एंटीऑक्सीडेंट्स की कमी को दूर करने के लिए विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन ई का सेवन करें।
- विटामिन बी, विटामिन B12, विटामिन B9, जिन चीजों में पाया जाता है उनको खाएँ जैसे हरी सब्जियां, ताजे फल आदि।
- जिंक, व्यक्ति के शरीर में एंटीडिप्रेसेंट की तरह काम करता है। इसलिए इसलिए इसका भी सेवन करें।
- हर रोज सुबह उठकर व्यायाम जरूर करें।
- नशीले पदार्थों से दूर रहें।
Conclusion
क्रॉनिक डिप्रेशन ‘डिस्थीमिया’ एक तरह की मानसिक बीमारी है। यदि किसी व्यक्ति को यह बीमारी है तो उसे चाहिए कि वह इसका तुरंत इलाज करवाएं।
इसी के साथ इस लेख में हमने क्रॉनिक डिप्रेशन ‘डिस्थीमिया’ नामक इस मानसिक बीमारी के कारण, लक्षण और निवारण के बारे में भी बात की है। इन चीज़ों के बारे में जानकार इनके प्रति जागरूकता लाना तथा निवारण के तरीक़ों को अपनाना भी ज़रूरी है।
आज कल के जीवन में तनाव सबको होता है लेकिन इस तनाव को हद से ज़्यादा बढ़ने ना दें। इसे वक़्त रहते नियंत्रित करें। आज के अपने इस लेख के द्वारा हमने आपको महत्वपूर्ण जानकारी देने का भरपूर प्रयास किया है।
हम आशा करते हैं कि यह लेख आपके लिए उपयोगी साबित होगा। लेख से संबंधित सवालों और सुझावों को आप कॉमेंट बॉक्स में लिखकर हमसे शेयर कर सकते हैं।
बहुत बढ़िया जानकारी दी गई है। मैं जो जानना चाहता था उसके बारे में यहाँ पूरी जानकारी दी गई है। धन्यवाद
Thank you.