इस ब्लॉग में जानिए “डेवलपमेंट डिसऑर्डर क्या है? जाने इसके प्रकार, लक्षण, कारण और निदान के बारे में पूरी जानकारी“
डेवलपमेंट डिसऑर्डर क्या है? / What is Development disorder in hindi
डेवलपमेंट डिसऑर्डर (Development Disorder) एक प्रकार की न्यूरोलॉजिकल समस्या के कारण होता है। यह डिसऑर्डर ज्यादातर बच्चों में पाया जाता है जिसमें बच्चा मानसिक और शारीरिक तौर पर बहुत कमजोर हो जाता है।
डेवलपमेंट डिसऑर्डर एक ऐसा रोग है जिसमें बच्चों के शारीरिक, मानसिक और व्यावहारिक विकास पर दुष्प्रभाव पड़ता है। जिसके कारण उन्हें बड़े होने पर काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।
यदि इस समस्या को बचपन में ही ठीक किया जाए तो आगे जीवन में ज्यादा परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ेगा। माता-पिता को चाहिए कि अपने बच्चे का खास ध्यान रखें और जैसे-जैसे वह बड़ा हो उसके व्यवहार को नजरअंदाज ना करें। यदि उन्हें कोई भी गड़बड़ी लगती है तो चिकित्सक के पास जाकर जांच करवाएं। नियमित तौर पर उसका इलाज करवाएं।
डेवलपमेंट डिसऑर्डर का बच्चों के विकास पर प्रभाव / Effect of development disorder on children development in hindi
डेवलपमेंट डिसऑर्डर (Development Disorder) की बीमारी से पीड़ित बच्चों में शारीरिक विकास में देरी होती है। वे सही से चल फिर नहीं पाते। ऐसे बच्चों का शरीर बहुत दुबला और कमजोर होता है। उनकी गर्दन उनके शरीर पर सही से नहीं टिक पाती। उन्हें बोलने में दिक्कत होती है। इसके साथ-साथ मानसिक विकास में भी गड़बड़ी होती है, जैसे किसी भी चीज को आसानी से समझ ना पाना, शब्दों को सही ढंग से बोलने में दिक्कत होना, चीजों को पहचानने और उन्हें याद रखने में समस्या होना आदि।
इसके अलावा बच्चों को बड़े होने पर दूसरे लोगों से मेल मिलाप में दिक्कतें आती हैं। इस समस्या के कारण बच्चों के रोजमर्रा के काम और उनकी जीवनशैली भी प्रभावित होती है। डेवलपमेंट डिसऑर्डर के प्रति लोगों को जागरूक होना चाहिए। इस बीमारी के बारे में हर माता-पिता को खबर रखनी आवश्यक है ताकि वे जागरूक रहें और अपने बच्चों का सही से ख्याल रख सकें। ज्यादातर लोग इस बीमारी के बारे में जानकारी नहीं रखते। डेवलपमेंट डिसऑर्डर में बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास तो प्रभावित होता ही है साथ ही साथ इसके कारण बच्चे के कई अंगों पर भी प्रभाव पड़ता है।
इस बीमारी को न्यूरोडेवलपमेंट डिसऑर्डर (Neurodevelopment Disorder) के नाम से भी जाना जाता है। आज के शीर्षक में हम इससे संबंधित बातें करेंगे।
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डेवलपमेंट डिसऑर्डर के प्रकार / Development disorder type in hindi
डेवलपमेंटल डिसऑर्डर कई प्रकार का होता है जिसके कारण अलग-अलग प्रभाव पड़ते हैं।
- एडीएचडी (ADHD)
- बहरापन (Deafness)
- सेरेब्रल पाल्सी (cerebral palsy)
- लर्निंग डिसेबिलिटी होना (Learning Disability)
- इंटेलेक्चुअल डिसेबिलिटी (Intellectual Disability)
- दृष्टि में खराबी होना
- ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (Autism Spectrum Disorder) (यह तरीके का डिसऑर्डर है जिसमें व्यक्ति सामाजिक और लोगों से बातचीत करने में कठिनाई का सामना करता है)
- समझने की विकास दर में की कमी
डेवलपमेंट डिसऑर्डर के लक्षण / Development disorder symptoms in hindi
डेवलपमेंट डिसऑर्डर में बच्चों की मानसिक शक्ति कमजोर होने लगती है।
आमतौर पर जन्म के बाद ही शिशु चीज़ों को सीखने लगते हैं और वे धीरे-धीरे पहचानने लगते हैं परंतु डेवलपमेंट डिसऑर्डर (Development Disorder) जैसी बीमारी में बच्चे चीजों को सही से नहीं सीख पाते और ना ही उसे पहचान पाते हैं।
छह से आठ माह में शिशु अपनी मां को ना पहचान पाए तो यह डेवलपमेंट डिसऑर्डर का लक्षण है।
तकरीबन 3 माह के बाद बच्चों की गर्दन उसके शरीर को संभाल लेनी चाहिए। यदि 3 माह के बाद भी शिशु अपनी गर्दन सही से नहीं टिका पा रहा है तो यह एक तरीके का विकार है जिसका संबंध नर्वस सिस्टम से है। यह डेवलपमेंट डिसऑर्डर का लक्षण भी हो सकता है।
6 से 7 महीने में बच्चों का बढ़ना शुरू हो जाना चाहिए। यदि आपका शिशु इस उम्र में कुछ भी तरक्की नहीं कर रहा और उसका वजन भी कम है तो उसके शरीर में दिक्कत हो सकती है। इससे पहले कि बीमारी बढ़े इसके लक्षणों को समझ कर डॉक्टर से संपर्क करें।
9 से 11 महीने के बच्चों का अपने पैरों पर खड़े ना हो पाना। सामान्य अवस्था में बच्चे 9 से 11 महीने के बीच में आराम से अपने पैरों पर खड़े होना सीख जाते हैं। कई बच्चे तो 9 से 11 महीने के पहले से ही अपने पैरों पर खड़े होना शुरू कर देते हैं परंतु अगर बच्चा अपने पैरों पर खड़े होने में देरी कर रहा है तो उसे नजरअंदाज करने से बचें।
18 महीने के बच्चों का शब्दों को ना भूल पाना। कई बार हम बच्चों को नजरअंदाज कर देते हैं और यह ध्यान नहीं दे पाते कि वह बच्चा बोल नहीं पा रहा।
मानसिक चेतना मे कमी होना।
चीजों पर ध्यान ना दे पाना।
शारीरिक विकास में देरी होना क्योंकि कई बार बच्चे कुपोषण के शिकार होते हैं। यह लक्षण उनमें जन्म से भी हो सकता है और जन्म के बाद से भी। बहुत सी गर्भवती महिलाओं को कई बार पोषक तत्व नहीं मिल पाते जिनके कारण बच्चों में यह विकार पैदा हो जाता है।
मानसिक विकार में देरी होना।
बच्चों को बोलने में दिक्कत आना।
अपने शरीर को ना संभाल पाना।
लोगों से बातचीत ना कर पाना। अन्य लोगों से बातचीत में दिक्कत होना।
चीजों को आसानी से ना समझ पाना।
अपनी बात ना कर पाना।
किसी भी चीज को सीखने में दिलचस्पी ना दिखाना।
काम करने में रुचि ना रखना।
शारीरिक रूप से अपंग हो जाना।
डेवलपमेंट डिसऑर्डर के कारण / Reasons of development disorder in hindi
बच्चों में डेवलपमेंट डिसऑर्डर की समस्या के जन्म से पहले के भी कई कारण हो सकते हैं-
- जच्चा बच्चा का सही से इलाज ना हो पाने के कारण डेवलपमेंट डिसऑर्डर हो सकता है।
- अच्छे व कुशल नेतृत्व में डिलीवरी ना होने के कारण शिशु में डेवलपमेंट डिसऑर्डर की समस्या हो सकती है।
- गर्भावस्था में शराब का सेवन करने से यह डिसऑर्डर हो सकता है। बहुत सी स्त्रियां गर्भावस्था में इन चीजों का ध्यान नहीं दे पाती और वह नशीले पदार्थ, गुटखा, सिगरेट, शराब आदि का सेवन करती हैं। गर्भवती महिलाओं को चाहिए कि वे धूम्रपान से दूर रहें और ऐसी जगह जाने से परहेज करें जहां धूम्रपान इत्यादि होता हो क्योंकि धूम्रपान के कारण उनके शिशु के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है को जो आगे चलकर उनके लिए परेशानी का सबब बन सकता है।
- अपरिपक्व जन्म (प्री मैच्योर डिलीवरी) से भी शिशु में यह डिसऑर्डर हो सकता है।
- बच्चे का कम वजन होना डेवलपमेंट डिसऑर्डर का एक कारण हो सकता है। यह गर्भवती महिला के स्वास्थ्य पर भी निर्भर करता है। हो सकता है कि वह महिला कुपोषण की शिकार हो जिसके कारण उसके बच्चे के विकसित होने की दर प्रभावित हो गई हो।
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जानिये इसका निदान कैसे करें? / How to get rid of development disorder in hindi
डेवलपमेंटल डिसऑर्डर का कोई सटीक इलाज अभी तक नहीं मिल पाया है। इस बीमारी के लक्षण दिखने पर बच्चों को कई तरह की थेरेपीज और दवाएं देकर इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है।
गर्भवती महिलाओं को चाहिए कि वे बीमारियों से बचने के लिए टीकाकरण जरूर करवाएं।
डेवलपमेंट डिसऑर्डर को पहचानने का सबसे सही तरीका यह है कि जब आप अपने बच्चे को अन्य बच्चों के मुकाबले में कम विकसित होता हुआ पाएं तो उसे डॉक्टर के पास ले जाकर उसकी जांच करवाएं।
फिजियोथेरेपी इसका एक इलाज बताया गया है और बोन मैरो ट्रांसप्लांट (Bone Marrow Transplant) के द्वारा इस पर किसी हद तक काबू पाया जा सकता है। क्योंकि शरीर और मस्तिष्क का सारा कार्यभार बोन मैरो पर ही निर्भर है।
निष्कर्ष / Conclusion
इस दौर में डेवलपमेंट डिसआर्डर काफी तेजी से बढ़ता जा रहा है। अन्य देशों के मुकाबले में भारत भी इसमें काफी आगे आ चुका है। भारत में बहुत सारे ऐसे केसेज देखने को मिले हैं जिनमें बच्चे डेवलपमेंट डिसऑर्डर के शिकार हैं।
भारत में गरीबी के कारण यह बहुत तेजी से फैल रहा है। भारत के अलावा अन्य देशों में भी बहुत सारे बच्चे इस डिसऑर्डर से पीड़ित नजर आएंगे। हालांकि इसका कोई भी सटीक इलाज अभी तक नहीं है। वैज्ञानिक इसका इलाज ढूंढ रहे हैं परंतु इतनी तरक्की के बावजूद अभी तक इसका कोई ऐसा इलाज नहीं आया है जो इस डिसऑर्डर को खत्म कर सकें। यदि समय पर इस डिसऑर्डर को पहचान लिया जाए तो इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास ही उनके आने वाले जीवन की नींव रखता है। किसी भी तरीके की कोई कमी उन्हें जिंदगी भर का पछतावा दे सकती है।
यदि हमारा मस्तिष्क सही से काम नहीं करेगा तो उसके कारण हमारा शरीर भी अपंग रहेगा क्योंकि शरीर को हमारा मस्तिष्क ही नियंत्रण करता है। हमारे जिंदगी का पहिया हमारे मस्तिष्क पर ही निर्भर है इसलिए मस्तिष्क की खराबी हमारे लिए बहुत बड़ी समस्या बन सकती है।
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