सिजोफ्रेनिया (Schizophrenia) – भूत प्रेत का साया या एक मानसिक रोग ?

इस ब्लॉग में हम जानेंगे “सिजोफ्रेनिया (Schizophrenia) – भूत प्रेत का साया या एक मानसिक रोग ? के बारे में“

बीमारियां कई प्रकार की होती हैं। हम अपने आस पास बहुत से ऐसे बीमार लोगों को देखते हैं जो अपनी ज़िंदगी का कठिन समय गुज़ार रहे होते हैं। कई बार हम इन मरीज़ों को ठीक होते हुए देखते हैं तो वहीं कई बार उन्हें हारते हुए भी देखते हैं। ऐसी ही एक मानसिक बीमारी है जो न सिर्फ़ ख़तरनाक है बल्कि ऐसी बीमारी से पीड़ित लोग दया के पात्र होते हैं। हम बात कर रहे हैं सिजोफ्रेनिया की। आज का हमारा ये टॉपिक थोड़ा सा अलग होने वाला है क्योंकि हम बात करेंगे इस गंभीर मानसिक बीमारी की।

सिजोफ्रेनिया क्या है ? | Schizophrenia kya hai?

सिजोफ्रेनिया एक मानसिक बीमारी है। इस बीमारी के कारण व्यक्ति के शरीर, मस्तिष्क और स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इस मानसिक बीमारी के कारण व्यक्ति अपनी जीवनशैली के कामों को सही तरीके से नहीं कर पाता।

सिजोफ्रेनिया की बीमारी मर्द और औरत दोनों में हो सकती है। गांव की अपेक्षा यह बीमारी शहरों में ज्यादा देखने को मिलती है। इस बीमारी के होने की संभावना 15 साल से ऊपर के लोगों में ज्यादा देखी जा सकती है।

सिजोफ्रेनिया में व्यक्ति किसी चीज या किसी व्यक्ति की गैरमौजूदगी में भी वह चीजें सोचने लगता है और वह चीजें उसे हकीकत में नजर आती हुई दिखाई देती हैं हालांकि उन चीजों का कोई वजूद नहीं होता।

दूसरे लोग उसे नहीं देख पाते, यह सिर्फ और सिर्फ उस बीमार व्यक्ति के मस्तिष्क के कारण होता है। उसे कई तरीके की आवाजें भी सुनाई देती हैं। उस की ऐसी हालत देखकर दूसरे व्यक्ति उसे पागल समझते हैं, परंतु यह पागलपन नहीं बल्कि एक मानसिक रोग है, जिसका इलाज वक्त पर कराना अनिवार्य है।

यदि आप इस तरह के कोई भी व्यक्ति को देखें या आपके परिवार में ऐसा कोई व्यवहार करता है तो आपको चाहिए कि उसे मनोवैज्ञानिक के पास ले जाकर उसका इलाज कराएं।

आज के शीर्षक में हम इसके बारे में बात करेंगे कि यह बीमारी कैसे होती है? और इसका इलाज कैसे किया जाए? तो आइए जानते हैं इसके बारे में कुछ बातें –

सिजोफ्रेनिया के लक्षण | Schizophrenia symptoms in hindi

इस बीमारी में हेलूसीनेशन/ मतिभ्रम (hallucination) होने लगता है। हेलूसीनेशन का मतलब सिजोफ्रेनिया के रोगी को किसी भी इंसान या चीज की गैरमौजूदगी में भी वह चीजें नजर आ रही होती है। कभी-कभी उसे तन्हाई में कई आवाजें सुनाई देती हैं। सिजोफ्रेनिया में सबसे ज्यादा मरीजों को हेलूसीनेशन ही होता है।

यह चीजें उस व्यक्ति के लिए इतनी ज्यादा सत्य होती हैं जितनी हमारे लिए एक दूसरे की आवाज है। उन्हें लगता है कि यह आवाजें बाहर से आ रही हैं जो उनके कानों को सुनाई दे रही हैं। हालांकि यह आवाजें किसी और को सुनाई नहीं दे रही होती हैं।

उन आवाजों के साथ व्यक्ति बातें करता है, और कुछ चीजें उसे नजर आती हैं। कभी-कभी तो उसे खुशबू भी महसूस होती है और कुछ चीजों को अपने आप को छूता हुआ महसूस करता है।

सिजोफ्रेनिया में हेलूसीनेशन होता है। जब भी ऐसे किसी व्यक्ति को आप देखे तो उसे फौरन मनोविज्ञान के पास ले जाकर उसका इलाज करवाएं। अन्यथा यह खतरनाक हो सकता है।

हेलूसीनेशन के साथ-साथ व्यक्ति को डिलूज़न भी होता है। डिलूज़न उन खयालात को कहते हैं जिन पर मनुष्य का पूरी तरह यकीन हो लेकिन उसकी कोई हकीकत ना हो।

कई बार यह खयालात, हालात और वाकयात को सही तौर पर न समझ पाने या गलतफहमी का शिकार हो जाने के कारण भी पैदा होते हैं।

लोगों को लगता है कि उनका ख्याल गलत है या अजीबोगरीब है। कई बार ये खयाल कई तरीके का हो सकता है।

कई बार सिजोफ्रेनिया के मरीज को लगता है कि दूसरे लोग उसके दुश्मन हो गए हैं, जो उन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं। हालांकि इसका प्रभाव उसके स्वास्थ्य पर नहीं पड़ता परंतु इस बीमारी के कारण उसकी जीवन शैली में बहुत से उतार चढ़ाव होते हैं और यह उसके लिए और दूसरों के लिए बहुत ज्यादा हानिकारक हो सकता है।

सिजोफ्रेनिया के मरीजों के अंदर उलझे हुए खयालात आते हैं। वे अपने रोजमर्रा के कामों को सही तरीके से नहीं कर पाते। वे अपनी जीवनशैली के काम और बातों पर तवज्जो देने में असमर्थ रहते हैं। उन्हें लगता है कि उनकी जो भी भावनाएं और सोच विचार हैं वे सही हैं।

उनको कुछ याद नहीं रहता। हर वक्त उनका ध्यान भटका रहता है और उन्हें महसूस होता है कि उनके मस्तिष्क पर धुंध सी छा गई है। पल भर में अपने एक काम को भूलकर दूसरा काम करने लगते हैं और उन्हें याद भी नहीं रहता कि वह क्या काम कर रहे थे।

यह चीजें किसी भी व्यक्ति के लिए बहुत ज्यादा हानिकारक होती हैं इसलिए इस पर ध्यान दें। और मनोवैज्ञानिक के पास ले जाकर उसका कारण जानने की कोशिश करें।

ऐसा जरूरी नहीं कि सारे सिजोफ्रेनिया के मरीजों को हेलूसीनेशन और डिलूज़न हो, बल्कि बहुत से लोगों को इस बीमारी के होने का एहसास भी नहीं होता। वह चीजों को भूलने लगते हैं और सब काम उलट-पुलट करते हैं। उन्हें इस बात का एहसास नहीं होता कि बीमारी उनको हो रही है। देखने वाले लोगों को लगता है कि व्यक्ति किसी काम को गलत कर रहा है और कोई उसको समझ नहीं पाता।

जब भी आप किसी भी व्यक्ति के अंदर कोई मानसिक विकार या अजीब बात 1 महीना या 2 महीना होते हुए देखे तो उसको नजरअंदाज ना करें।

यह भी पढ़ें –

सिजोफ्रेनिया के कारण | Schizophrenia causes in hindi

सिजोफ्रेनिया के बारे में अभी तक कोई भी शोध नहीं कर पाया है कि यह बीमारी क्यों होती है परंतु कई लोगों ने खोज करके ये बताने की कोशिश की है कि कुछ ऐसे कारण हैं जिनके जरिए से सिजोफ्रेनिया जैसी मानसिक बीमारी होने की संभावना बढ़ सकती है। तो आइए जानते हैं कि वह कौन से कारण हैं जिनके जरिए से यह खतरनाक बीमारी हो सकती है –

सिजोफ्रेनिया के कारण | Schizophrenia causes in hindi

तनाव के कारण

कई बार व्यक्ति तनाव और चिंता में रहने के कारण सिजोफ्रेनिया जैसी मानसिक बीमारी से उलझ जाता है। यह बीमारी बहुत खतरनाक बीमारी है इसलिए व्यक्ति को चाहिए कि वह ज्यादा तनाव और चिंता ना करें।

अकेले रहने से

अकेलेपन की चाहत बहुत ख़तरनाक चीज़ है। ये कई बीमारियों को जन्म दे सकता है जैसे सिजोफ्रेनिया।

वंशागति (Inheritance)

कई सारे शोध के बाद वैज्ञानिकों ने बताया है कि यह वंशानुगत हो सकता है। यदि आपके परिवार में या पूर्वजों में किसी को इस तरीके की बीमारी है तो आपको भी सिजोफ्रेनिया होने की संभावना हो सकती है।

जुड़वा बच्चों में

अगर जुड़वा बच्चों में से एक को ये बीमारी है तो दूसरे बच्चे को भी सिजोफ्रेनिया होने की संभावना क‌ई हद तक बढ़ जाती है।

दिमागी कमजोरी के कारण

सिजोफ्रेनिया वाले मरीजों के दिमाग की उपज आम लोगों से बहुत ही ज्यादा अलग होती है। कुछ लोगों के दिमाग का विकास कई कारणों की वजह से सही से नहीं हो पाता है। इस कारण भी सिजोफ्रेनिया हो सकता है। ऐसा भी पाया गया है कि जब किसी बच्चे के दिमाग को ऑक्सीजन सही से नहीं मिल पाता है तो उसका दिमाग सही से विकसित नहीं पाता। इस कारण भी यह मानसिक रोग हो सकता है।

नशीले पदार्थों के कारण

जो लोग बहुत ज्यादा अल्कोहल, कुकीन, चरस, गांजा, ईमफीटामीन इत्यादि जैसे नशीले पदार्थों का इस्तेमाल करते हैं वे सिजोफ्रेनिया का शिकार हो सकते हैं। इससे मानसिक रोग पैदा होने लगता है और इसका इस्तेमाल न करने से खत्म भी हो जाता है।

मानसिक दबाव के कारण

मानसिक दबाव या स्ट्रेस के कारण भी सिजोफ्रेनिया होने की संभावना बढ़ जाती है। जो व्यक्ति बहुत ज्यादा स्ट्रेस लेता है और हमेशा परेशान रहता है उसको यह बीमारी आसानी से हो सकती है।

पारिवारिक समस्याओं के कारण

पारिवारिक समस्याओं के कारण व्यक्ति उलझा रहता है और वह अपनी परेशानियों का हल तलाश नहीं कर पाता। इसलिए बहुत से लोगों को यह बीमारी उनकी पारिवारिक समस्याओं के कारण होती है।

बचपन में अकेलापन रहने के कारण

बहुत से ऐसे लोग हैं जो बच्चों पर ध्यान नहीं दे पाते जिसके कारण वे अकेले रहते हैं। अकेले रहने के कारण बच्चों को हेलूसीनेशन और डिलूज़न होने लगता है। इसके कारण वे खुद से बातें करना शुरू कर देते हैं और कई सारी ऐसी चीजों को देखता हुआ महसूस करता है जो कि हकीकत में नहीं होती।

ये सब बस उनका वहम होता है। वे अपनी दुनिया में ही रहते हैं। अपने कामों को वे सही से नहीं कर पाते जिसके कारण वे हमेशा परेशान रहते हैं। सिजोफ्रेनिया ऐसे लोगों को जल्दी होता है जो अकेले रहते हैं और वे सोसाइटी से घुल मिल नहीं पाते।

और भी पढ़ें –

सिजोफ्रेनिया का उपचार | Schizophrenia treatment in hindi

सिजोफ्रेनिया के मरीजों के अंदर कुछ करने का जज्बा खत्म हो जाता है। वे अकेले रहना पसंद करते हैं और अपने आसपास के लोगों को बुरा समझते हैं।

उनके अंदर ये बैठ जाता है कि लोग उनके लिए खतरनाक हैं और वे किसी भी काम को दिल लगाकर नहीं करते।

उनके अंदर से जीने की इच्छा खत्म हो जाती है, और कई बार तो इस बीमारी से जूझने वाले व्यक्ति खुदकुशी करने की भी कोशिश करते हैं। इस मानसिक बीमारी का निवारण होना बेहद ज़रूरी है। कुछ ऐसे टिप्स हैं जो हमें ध्यान रखने चाहिए। आइए देखते हैं कि वे क्या हैं-

यह तो हम सभी जानते हैं कि यह एक मानसिक बीमारी है लेकिन इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति पागल नहीं होता है। हालाँकि लोग उन्हें पागल समझते हैं और यह मानते हैं कि व्यक्ति पर कुछ जादू टोना या जिन, भूत आ गया है जो कि सरासर गलत बात है। ये उसके मस्तिष्क के कारण होता है। इसलिए ऐसे व्यक्तियों का इलाज कराना जरूरी है।

व्यक्ति का सही से इलाज न कराने के कारण यह बहुत खतरनाक भी हो सकता है। ऐसे लोगों के मस्तिष्क में ऐसे ख्याल आते हैं कि उनके आसपास वाले उनके लिए नुकसानदेह हैं और वे उन्हें मारना चाहते हैं। इस ख़याल के आते ही वे अकेले होने का अहसास करने लगते हैं। कभी कभी खुद को बचाने के चक्कर में वे दूसरों पर हमला भी कर बैठते हैं।

ऐसे लोगों का इलाज कराना चाहिए और मनोवैज्ञानिक के पास ले जाना चाहिए। ऐसे मरीजों को अस्पताल में दाखिल करने की कोई आवश्यकता नहीं होती है। बल्कि वह अपनी जिंदगी अच्छे से गुजार सकते हैं। उनका इलाज घर पर आसानी से हो सकता है।

सिजोफ्रेनिया के मरीजों का इलाज दवाई और काउंसलिंग के जरिए से हो सकता है। इसके माध्यम से लोग ठीक हो जाते हैं। कई बार तो ऐसा भी होता है कि 60% लोग दवा इलाज से सही हो जाते हैं परंतु कहीं ना कहीं उनके अंदर कुछ ऐसे लक्षण मौजूद रहते हैं जो किसी भी वक्त बिगड़ सकते हैं। 20% लोगों में यह बीमारी बहुत ही ज्यादा शदीद किस्म या गंभीर होती है। इलाज कराने के बाद भी यह कहीं ना कहीं उनके अंदर रह जाती है। तो ऐसी स्थिति में निराश नहीं होना है। कोशिश करें कि आप मरीज़ को काउंसलर से लगातार सेशन दिलवाते रहें।

अगर सिजोफ्रेनिया के व्यक्तियों इलाज न कराया गया तो वे खुदकशी कर लेते हैं। इसलिए इस बीमारी की गंभीरता को समझें तथा मरीज़ का इलाज करवाएं।

इस बात का ख्याल रखें कि यदि एक बार इलाज शुरू हो गया तो उसका पूरा इलाज कराएं अन्यथा बीच में छोड़ देने से बीमारी का बढ़ जाने का खतरा हो सकता है।

ऐसे व्यक्तियों को इलाज के साथ-साथ उनकी देखभाल और निगरानी करना बहुत जरूरी है। उन्हें प्यार मोहब्बत की जरूरत होती है। उन्हें किसी भी वक्त अकेला ना छोड़ें।

दवाओं के जरिए व्यक्ति के हेलूसीनेशन और डिलूज़न को कम किया जाता है जिससे वे किसी हद तक सही तरीके से सोचने लगते हैं और वे अपने कामों को सही तरीके से करने लगते हैं। उनके अंदर कुछ करने का जज्बा पैदा हो जाता है।

सिजोफ्रेनिया के मरीजों के लिए दवाइयां, गोलियां, सीरप, कैप्सूल और इंजेक्शन भी अवेलेबल हैं। जो व्यक्ति दवाइयां और कैप्सूल खाने में परेशानी महसूस करता है उसे दो से 4 हफ्ते में एक बार इंजेक्शन लगवाना जरूरी होता है।

निष्कर्ष | Conclusion

यह बात हम सभी जानते हैं कि सिजोफ्रेनिया एक मानसिक बीमारी है। यह बहुत खतरनाक बीमारी भी है।

इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को देखकर लोगों को ऐसा लगता है कि मरीज के ऊपर कोई जिन या भूत सवार हो गया है। वह खुद से बातें करता है। उसे कई बार ऐसी चीजें नजर आती हैं, जो कि असल जिंदगी में नहीं होती हैं। यह एक बीमारी है और ऐसे व्यक्ति पर किसी भी भूत-प्रेत का असर नहीं होता बल्कि यह उसके दिमाग के कारण होता है।

पीड़ित व्यक्ति को देखकर ऐसा महसूस होता है कि वह पागल हो गया है। ऐसे व्यक्तियों को उसके परिवार के लोग किसी साधु, बाबा या मौलवी के पास ले जाते हैं और उनकी दुआ, ताबीज इत्यादि से उसका इलाज करने की कोशिश करते हैं परंतु यह सब सही नहीं है। पीड़ित व्यक्ति को किसी मनोवैज्ञानिक के पास ले जाकर सही तरीके से इलाज करवाएं अन्यथा बीमारी के बढ़ जाने से मरीज के साथ-साथ उसके परिवार के लोगों को भी बहुत समस्या झेलनी पड़ सकती है। तो आइए मिलकर ऐसे लोगों को प्यार व मोहब्बत दें और उनको इस बात का एहसास दिलाएं कि वे अकेले नहीं है और इस बीमारी से लड़ने की उनको उनके अंदर हौसला पैदा करें।

अपने सवालों और सुझावों को कॉमेंट बॉक्स लिखकर हम से शेयर करना न भूलें।

Related Posts

Leave a Reply